Popular Kabir Das Ke Dohe With Images
In this post, we have shared Kabir ke dohe with images. You can use these images in your status or any social platform. We well described Kabir ke dohe with pictures; all Kabir ke dohe in the Hindi language.

तिनका कबहूँ न निंदिये जो पावन तर होए ।
कभू उडी अँखियाँ परे तो पीर घनेरी होए ॥
kabir ke dohe

पाथर पूजे हरि मिले , तो मैं पूजू पहाड़ ।
घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार॥
kabir ke dohe

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
kabir ke dohe
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कहे कबीर कैसे निबाहे , केर बेर को संग
वह झूमत रस आपनी, उसके फाटत अंग .
kabir ke dohe

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर॥
kabir ke dohe

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥
kabir ke dohe
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दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय |
मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाय ||
kabir ke dohe

साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
kabir ke dohe

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
kabir ke dohe

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
kabir ke dohe

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
kabir ke dohe

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर॥
kabir ke dohe

कबीर दर्शन साधु के, करत ना कीजै कानि ।
जो उधम से लक्ष्मी, आलस मन से हानि ॥
kabir ke dohe
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परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि ।
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि ॥
kabir ke dohe

विषय त्याग बैराग है, समता कहिये ज्ञान ।
सुखदाई सब जीव सों, यही भक्ति परमान ॥
kabir ke dohe

पढ़ा सुना सीखा सभी, मिटी ना संशय शूल |
कहे कबीर कैसो कहू, यह सब दुःख का मूल ||
kabir ke dohe

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोई जाने बोल |
हीरा तो दामो मिले, शब्द मोल न टोल ||
kabir ke dohe

नारी पुरुष सब ही सुनो, यह सतगुरु की साख |
विष फल फले अनेक है, मत देखो कोई चाख ||
kabir ke dohe

पहले शब्द पहचानिये, पीछे कीजे मोल |
पारखी परखे रतन को, शब्द का मोल ना तोल ||
kabir ke dohe

मन उन्मना न तोलिये, शब्द के मोल न तोल |
मुर्ख लोग न जान्सी, आपा खोया बोल ||
kabir ke dohe

श्रम से ही सब कुछ होत है, बिन श्रम मिले कुछ नाही
सीधे ऊँगली घी जमो, कबसू निकसे नाही ||
kabir ke dohe

तिनका कबहूँ न निंदिये जो पावन तर होए ।
कभू उडी अँखियाँ परे तो पीर घनेरी होए ॥
kabir ke dohe

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय |
kabir ke dohe